गौरतलब है कि जून, 2020 में झारखंड राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो गया था। इसके बाद, राज्य महिला आयोग एक तरह से अध्यक्ष विहीन और सदस्य विहीन होकर रह गया। महिला आयोग डिफंग संस्थान बन गया है। इन्होंने कहा कि यही कारण है कि पिछले दो सालों से महिलाओं से जुड़े 4 हजार से ज्यादा मामले (केस) पेंडिंग पड़े हैं। झारखंड राज्य महिला अयोग के फंक्शनल नहीं होने की वजह से राज्य की महिलाओं को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। घरेलु हिंसा हो या कार्यस्थल पर उत्पीड़न इन मामलों में महिलाओं को अपनी समस्या के निराकरण हेतु अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। खासकर गरीब एवं आदिवासी समुदाय की महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं को सुरक्षा और संरक्षण देना सरकार के कर्तव्यों में से एक है । झारखण्ड सरकार अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकती है ।
वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए इन्होंने महिलाओं के हित में झारखंड सरकार से मांग की है कि झारखंड राज्य महिला आयोग को अतिशीघ्र पुनर्गठित किया जाए ताकि कार्यस्थल या घरेलु हिंसा या उत्पीड़न आदि से पीड़ित महिलाओं को सहजता से न्याय मिल सके।