देश में बाल विवाह की बुराई को खत्म करने के लिए लोगों को जागरुक करने के मकसद से शुरु किया गया “बाल विवाह मुक्त भारत” अभियान का आज आगाज हो गया। इस ऐतिहासिक ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान का नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी और लेमा जोबोई ने राजस्थान से दीप जलाकर कर शुभारंभ किया। राजस्थान स्थित विराट नगर के बंजारा समुदाय की बहुलता वाले नवरंगपुरा गांव में इस अभियान के शुभारंभ ने एक नया इतिहास रच दिया। आजाद भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में बाल विवाह जैसे सामाजिक मुद्दे पर इतना बड़ा अभियान पहली बार जमीनी स्तर पर शुरु हो रहा है, जिसमें देशभर के हजारों गांवों में लाखों लोगों ने दीया जला कर इस सामाजिक बुराई को खत्म करने का प्रण लिया।
इसी क्रम में झारखंड राज्य की सरकारी संस्था ने कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के सहयोग से झारखंड के सभी जिलों में बाल विवाह मुक्त भारत हेतु मशाल सह संकल्प अभियान के तहत कार्यक्रम किए गए बाल विवाह के खिलाफ जागरुकता अभियान के इस दीप जलाओ कार्यक्रम में 80 हजार से अधिक लोग शामिल हुए और बाल विवाह को खत्म करने का संकल्प लिया।
गिरिडीह में भी इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचलाधिकारी, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी. कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के कार्यकर्ता, उदय राय, सुधीर वर्मा, संदीप नयन, भरत पाठक, राजू सिंह, सुरेन्द्र सिंह, सहित सभी कार्यकर्ता . समेत बड़ी संख्या में गणमान्य हस्तियां महिलाएं एवं बच्चे बच्चियाँ उपस्थित रहीं।
संस्था के गिरिडीह जिला निदेशक .सुरेन्द्र पंडित. ने कहा, ‘ श्री कैलाश सत्यार्थी ने लोगों को जागरूक कर बाल विवाह के प्रति उनकी सोच व व्यवहार में बदलाव लाने और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया है। इसी के लिए उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान के तीन मुख्य लक्ष्य हैं। पहला कानून का सख्ती से पालन हो, यह सुनिश्चित करना। दूसरा, महिलाओं और बच्चों का सशक्तीकरण करना और 18 साल तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करना। जबकि तीसरा उन्हें यौन शोषण से बचाना है।
बाल विवाह को लेकर ग्रासरूट लेबल पर एक दिन में इतने बड़े पैमाने पर कार्यक्रम पहली बार आयोजित हुआ है। देश के कोने-कोने और दूरदराज में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र, नौजवान, डॉक्टर, प्रोफेशनल्स, महिला नेत्री, वकील, शिक्षक, शिक्षाविद् और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी जम कर हिस्सा लिया। अभियान में नागरिक संगठन और स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी बड़ी तादाद में हिस्सा लिया और कार्यक्रम भी आयोजित किए। बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की खास बात यह थी कि सड़कों पर उतर कर नेतृत्व करने वाली महिलाओं में, ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा थी जो कभी खुद बाल विवाह के दंश का शिकार हो चुकी थीं। कई जगह अभियान का नेतृत्व उन बेटियों ने किया, जिन्होंने समाज और परिवार से विद्रोह कर न केवल अपना बाल विवाह रुकवाया, बल्कि अपने जैसी कई अन्य लड़कियों को भी बाल विवाह के शिकार होने से बचाया। सभी ने एकसुर में बाल विवाह को रोकने के लिए कानूनों के सख्ती से पालन करवाने की बात कही।
बाल विवाह पीड़ितों की दुर्दशा पर रौशनी डालते हुए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने कहा, ‘बाल विवाह मानव अधिकारों और गरिमा का हनन है, जिसे दुर्भाग्य से सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है। यह सामाजिक बुराई हमारे बच्चों, खासकर हमारी बेटियों के खिलाफ, अंतहीन अपराधों को जन्म देती है। कुछ सप्ताह पहले मैंने बाल विवाह मुक्त भारत बनाने का आह्वान किया था। इसने सदियों पुराने दमनकारी सामाजिक रिवाज से घुटन महसूस कर रही 70,547 महिलाओं में वह आग पैदा कर दी कि वे इसे चुनौती देने के लिए सड़कों पर उतर आई हैं। मैं लड़कियों की शादी की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने के, भारत सरकार के प्रस्ताव का समर्थन करता हूं। मैं सभी धर्मगुरुओं का आह्वान करता हूं कि वे इस अपराध के खिलाफ बोलें और यह सुनिश्चित करें कि जो लोग शादियां कराते हैं, यहां तक कि गांव के स्तर पर भी, वे बच्चों के खिलाफ इस अपराध को न होने दें। शादियों में सजावट करने वाले, मैरेज हॉल मालिकों, बैंड-बाजा वालों, कैटरिंग वालों और दूसरे सभी लोगों से अनुरोध करता हूं कि वे इन शादियों में अपनी सेवाएं देकर इस आपराधिक कृत्य के सहभागी न बनें। आप में से जो लोग अपने गांवों में बाल विवाह रोक रहे हैं, उनको मैं भरोसा दिलाना चाहता हूं कि आप खुद को अकेला न समझें। इस लड़ाई में मैं आपके साथ खड़ा हूं। आपके भाई के रूप में, मैं आपकी हर संभव सहायता और समर्थन करूंगा। मैं इस लड़ाई में आपका साथ नहीं छोड़ने वाला।’
इस अवसर पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित लाइबेरिया की लेमा जेबोई ने भी बाल विवाह पर चिंता जताते हुए कहा, ‘बाल विवाह वैश्विक स्तर पर एक भयावह बुराई है। हमें मानवाधिकार की हत्या करने वाली इस कुप्रथा का अंत करना ही होगा।’